गबन

 कुछ दिन पहले मै बाज़ार में मुंशी प्रेमचंद का एक मशहूर उपन्यास ( Novel ) गबन लेने गया ‌। दुकानदार ने मुझसे पूछा इंग्लिश में चाहिए या हिन्दी में । मैंने कहा हिन्दी में दिजिए । इस कहानी को पढ़ते वक्त कई सवाल दिमाग में आए । सबसे अहम सवाल जो था वोह ज़बान का था। कहानी के मेन किरदार की तरह , हमारी रोज़ की ज़िंदगी में भी दिखावे के बिना  गुज़र बसर नहीं हो सकता।


आज आज़ादी के 70 से ज़्यादा साल बाद भी हम लोग एक तरह के कोलोनियल  हैंगओवर में जी रहे हैं । जिसमें हम अंग्रेजी ज़बान और वेस्टर्न तौर तरीको को सबसे ऊंचा मानते हैं ।  स्कूल ,  कॉलेजेस , ऑफिस हर जगह अगर उन लोगों को नोटिस किया जाए जो अंग्रेज़ी अच्छे से नहीं बोल पाते ,  तो हमें एहसास होगा कि वह कितना दबा हुआ महसूस करते हैं ,  उनके फ्रेंडसर्किल भी बहुत अलग होते हैं वोह अपने टैलेंट और स्किल्स को कभी अच्छे से जाहिर नहीं कर पाते । इस नज़रिए से सबसे ज्यादा नुकसान हमारी अपनी ज़बान , उसके लिटरेचर और इन लोगों को पहुंचता है । हम ना उनकी कभी अहमियत समझते हैं और ना ही उसे जानने की कोशिश करते हैं ।  मुंशी प्रेमचंद और ना जाने कितने हिंदी और बाकी ज़बानो  के  लेखक स्कूल की आठवीं-नौवीं  क्लास तक सीमित रह जाते हैं । जाने अनजाने में हम एक ऐसे  इंटेलेक्चुअल सर्किल का हिस्सा बन जाते हैं जो पढ़ा लिखा तो है लेकिन जमीनी हकीकत से दूर  है ‌।



इस पोस्ट के ज़रिए मेरा अंग्रेजी के खिलाफ कोई एजेंडा नहीं है बल्कि मैं तो यह मानता हूं कि मेरी भी  अंग्रेज़ी की कमांड  बाकी ज़बानो से बेहतर है । बेशक अंग्रेजी ज़बान से काफी कुछ हासिल किया जा सकता है  , और वोह हमारी डे टुडे लाइफ का हिस्सा है । लेकिन आज इस बात का यकीन हो गया है कि हमें हिंदुस्तानी होने के नाते अपने अपने सूबों कि ज़बान और उनके लिटरेचर पर खास ध्यान देना चाहिए । ताकि हम इस मुल्क को बेहतर तरीके से समझ सकें और लोगों से जुड़े । 

यह कोई इत्तेफाक नहीं कि प्रेमचंद जिन्हें उपन्यास सम्राट माना जाता है आज उनकी किताबें महज़ पचास - सौ रुपए में मिल जाती है । इस बात से ज़ाहिर होता है कि हिन्दी ज़बान हमारे इंटेलेक्चुअल सर्किल्स में कितने नीचे स्टैंड करती है । 


जैसे जर्मनी , फ्रांस , स्पेन , चाइना और दुनिया भर के तमाम मुल्क अपने कल्चर को पहचानते और सेलिब्रेट करते हैं । वैसे ही हमें भी अपनी ज़बान और कल्चर को सेलिब्रेट करने की ज़रूरत है । 


 इस हालात में पाकिस्तान के मशहूर स्क्रिप्ट राइटर अनवर मकसूद साहब की कही एक बात याद आती है  " की किसी चीज़ को खत्म करना हो तो उसकी तरफ ध्यान देना छोड़ दो वोह अपने आप खत्म हो जाएगी " । 


हमें यह होने से रोकना होगा ।







Comments

  1. Ye tu sachii baat hai hum log English language sikhne ke chakkar me na tu Puri taur per English language apana paye aur na aapni rastya bhasa(Hindi) ku... Bacha page...

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